जिद्दी रिपोर्टर अपडेट..... पाकिस्तानी मूल के लोगों ने सिलसिलेवार तरीके से 11 से 13 साल की 1400 अंग्रेज़ बच्चियों को फंसाया और ...
जिद्दी रिपोर्टर अपडेट.....
पाकिस्तानी मूल के लोगों ने सिलसिलेवार तरीके से 11 से 13 साल की 1400 अंग्रेज़ बच्चियों को फंसाया और फिर उन्हें सेक्स डॉल की तरह इस्तेमाल करने लगे
वह बमुश्किल 12 साल की थी, जब उस लड़के से पहली मुलाकात हुई। उम्र में काफी बड़ा था वह। 20 का तो रहा ही होगा, लेकिन उसे लगा कि यही प्यार है। मुलाकातें बढ़ीं, चाहतें बढ़ीं, लेकिन उस लड़के ने उसे कभी छुआ तक नहीं। उसके साथ वह कई लोगों से मिली, खूब बातें कीं, पार्टियां कीं। फिर धीरे-धीरे खाने-पीने का दायरा बढ़ा। ड्रग्स, सिगरेट और शराब उन पार्टियों का हिस्सा बनने लगे। लेकिन उसे यही समझाया गया कि बड़े होने के लिए यह सब करना ज़रूरी है। उसे अच्छा लगता कि उसका दोस्त चाहे जितने नशे में हो, पर कभी कोई ग़लत हरकत नहीं की और न ही किसी को करने दी। पर यह सब एक धोखा था।
'एक रात हमने नशा किया। वहां काफी लोग थे। फिर उनमें से एक मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा। मैं हैरान थी। उस भीड़ में से कोई कुछ बोल क्यों नहीं रहा था। आखिर सब तो मेरे दोस्त थे?' वह 13 साल की हुई, जब पहली बार रेप हुआ उससे। भरे कमरे में, कई जोड़ा आंखों के सामने। फिर बलात्कार, यौन उत्पीड़न, गालियों और मारपीट का एक सिलसिला चल पड़ा। 'वे हफ्ते में कभी एक बार तो कभी दो बार मेरा रेप करते। मुझे दूसरों के सामने परोसा जाने लगा।'
एक इंटरव्यू में उसने ऐसी ही एक घटना के बारे में बताया। उन लोगों ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया। एक-एक करके न जाने कितने लोग अंदर गए, उसके साथ जबरदस्ती की। वह रोती रही, चिल्लाती रही और वे हंसते रहे। वह उनके लिए खेलने का सामान बन गई थी।
'मैंने सबसे पहले अपनी मां को इस बारे में बताया। मेरे घरवालों ने कई सरकारी एजेंसियों से गुहार लगाई, लेकिन कोई भी मेरी मदद न कर सका। मैंने ख़ुद को घर में कैद कर लिया। फिर वे घर आने लगे, धमकी देने लगे।' करीब एक साल तक वह उनके साथ एक दोस्त की तरह रही थी। इस दौरान उसके बारे में हर जानकारी हासिल कर ली थी उन लोगों ने। घर में कितने लोग हैं? कौन क्या करता है? कब कहां जाता है? जब उसने अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों का विरोध किया तो धमकी दी गई कि जो उसके साथ हुआ, वही अब उसकी मां के साथ होगा। 'वे मेरी मां का पीछा करने लगे। वह जहां जातीं, वे उनके साथ होते। मैंने ही नादानी में उन्हें बता दिया था कि मेरी मां कब घर से बाहर निकलती हैं।'
वह पुलिस के पास गई। लेकिन यहां एक परेशानी थी। जिन लोगों से वह इतने दिनों से मिल रही थी, उनके बारे में उसे कुछ पता ही नहीं था, सिवाय उनके निक नेम के। फिर भी उसने सबूत के तौर पर पुलिस को वे कपड़े दिए, जो उसने ख़ुद पर हुई ज्यादती के दौरान पहने थे। 'पुलिस ने वे सबूत खो दिए। अब मेरे पास अपनी बात साबित करने का कोई ज़रिया नहीं था। तब मेरे माता-पिता को लगा कि अगर इस दलदल से बाहर निकलना है तो घर छोड़ना होगा।'
लगभग चार साल यह सब भुगतने के बाद उसने अपना देश छोड़ दिया। वह वापस लौटने की हिम्मत तभी जुटा पाई, जब उसे लगा कि अब फिर से वही सब नहीं दोहराया जाएगा। वह किसी अफ्रीकी या एशियाई देश की नहीं, ब्रिटेन की नागरिक है और यकीन करना मुश्किल है कि यह सब ब्रिटिश धरती पर हुआ। उसके नाम की फिलहाल कोई अहमियत नहीं। बस इतना समझिए कि वह उन 14 सौ बच्चों में से एक थी, जिन्हें ये सब भुगतना पड़ा।
यह हक़ीक़त है इंग्लैंड के दक्षिण यॉर्कशर के रॉदरहैम शहर की। ब्रिटिश इतिहास का सबसे बड़ा बाल यौन उत्पीड़न कांड हुआ था यहां। संगठित तरीके से पूरे शहर में अंग्रेज़ बच्चों को निशाना बनाया गया। पहले दोस्ती का झांसा, फिर नशे की लत और आख़िर में बलात्कार। एक-दो नहीं, लगभग 14 सौ बच्चों के साथ यह सब किया गया और वह भी करीब 16 साल तक। सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह था कि इन घटनाओं के पीछे थे पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश नागरिक।
सरकारी रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह सब शुरू हुआ 1997 के आसपास और 2013 तक चलता रहा। हर केस में एक ही आम बात थी, आरोपियों का पाकिस्तानी मूल का होना। इसमें भी ज़्यादातर आरोपी टैक्सी चालक थे। वे स्कूलों, केयर सेंटर और घरों में अकेले रहने वाली बच्चियों को निशाना बनाते। महंगी गाड़ियों में लिफ्ट, पार्टी, घूमने-फिरने का लालच दिया जाता। लड़की को पहले बाकायदा भरोसे में लेते थे आरोपी। उसके बारे में हर जानकारी निकलवाते और फिर धकेल देते सेक्स ट्रैफिकिंग की ओर।
सबसे पहले ब्रिटेन के अख़बार द टाइम्स के एक रिपोर्टर एंड्रयू नॉरफॉक ने 2003 में रॉदरहैम की इन घटनाओं का खुलासा किया। कुछ राजनेताओं ने भी आवाज़ उठाई। लेकिन दो बातों ने पुलिस के हाथ बांध दिए। एक तो सबूत न होना और दूसरी राजनीतिक बंदिशें। पुलिस-प्रशासन के हाथ यह जानकारी लग चुकी थी कि इन अपराधों के पीछे पाकिस्तानी हैं। लेकिन रंगभेद के आरोपों से जूझ रही पुलिस ने कोई क़दम उठाने से परहेज किया। पहला डर यह था कि अगर एशियाई मूल के लोगों पर बच्चों से बलात्कार जैसे आरोप लगाए गए तो राजनीतिक विवाद खड़ा हो सकता है। काले-गोरे के भेद को लेकर ब्रिटिश पुलिस पर पहले भी अंगुलियां उठ चुकी थीं। ऐसे में रॉदरहैम की पुलिस और दूसरे अफ़सर कोई जोखिम नहीं लेना चाहते थे। उन्हें यह भी डर था कि कार्रवाई होने पर दो समुदायों के बीच तनाव हो सकता है, सामाजिक तानाबाना बिगड़ सकता है। नतीजा यह निकला कि एक तरह से पाकिस्तानियों को मनमानी करने की छूट मिल गई।
एलेक्सिस जे को 2013 में मामले की स्वतंत्र जांच का जिम्मा दिया गया। वह स्कॉटिश सरकार की चीफ सोशल अडवाइजर की जिम्मेदारी निभा चुकी थीं। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया कि किस तरह शुरुआती वर्षों में मामले सामने आने के बावजूद पुलिस ने आंखें मूंद ली। ऐसा लगा मानो वह न्याय करने की इच्छुक ही नहीं। उन्होंने एक वाकये का ज़िक्र किया है। काफी तैयारी के बाद एक लड़की सबूत देने को तैयार हुई, लेकिन पुलिस स्टेशन पहुंचने से पहले ही उसके मोबाइल पर एक मेसेज आया। मेसेज भेजा था उन्हीं लोगों ने, जिन्होंने इतने दिनों तक उसका रेप किया। उन लोगों ने खुलेआम धमकी दी थी कि उस लड़की की छोटी बहन उनके पास है। बताने की ज़रूरत नहीं कि वे सबूत फिर पुलिस के पास नहीं पहुंचे।
नेताओं को डर था सियासी नुकसान का, पुलिस अपनी छवि को लेकर परेशान थी। इस तरह अपराध करने वालों को पूरा मौका मिल गया। आधुनिक इतिहास की यह पहली घटना है, जहां इतने बड़े पैमाने पर योजनाबद्ध तरीके से बलात्कार को अंजाम दिया गया। मानो यह कोई मिशन हो और निशाने पर हों अंग्रेज़ परिवार। जे की रिपोर्ट के बाद सरकार ने कार्रवाई शुरू की तो ऐसे कई खुलासे होते चले गए। तब पता चला कि ब्रिटेन की क़ानून व्यवस्था के बीच हुसैन ब्रदर्स जैसे लोग भी फल-फूल रहे हैं। रॉदरहैम में रहने वाले तीन भाई, जिन पर रेप और अपहरण के लगभग 50 केस चले और सजा हुई। इन भाइयों का खौफ था पूरे शहर में।
एक पीड़िता ने मीडिया से बातचीत में कहा, 'मैं 14 की थी और हुसैन ब्रदर्स में से अर्शिद 24 का, लेकिन मुझे उम्र के इस फासले से कोई समस्या नहीं हुई। परिवार ने जब पहले समझाया तो मुझे लगा कि वे हमें मिलने देना नहीं चाहते। हुसैन ने भी कहा कि मेरे परिवार वाले जलते हैं। मैंने उस पर भरोसा किया, लेकिन जल्द ही उसके चेहरे का नकाब हट गया। कई बार मुझे लगा कि वे लोग मुझे मार डालेंगे। उन भाइयों से सभी कोई डरता है।' पीड़िता ने पुलिस से शिकायत की थी, लेकिन अधिकारियों को लगा कि यह लड़की अपनी उम्र की स्वाभाविक दिक्कतों से जूझ रही है।
मामले खुलने के बाद इस्तीफे हुए, ट्रायल चले। हुसैन भाइयों समेत कई पाकिस्तानी-ब्रिटिश नागरिकों को सजा हुई और अब भी हो रही है। लेकिन, सवाल यह है कि नरक जैसे उन 16 बरसों का क्या, जो इन 14 सौ बच्चियों ने झेले? जो भरोसा खोया उन्होंने, क्या वह कभी वापस आ पाएगा?
आवाज़ : गौरव आसरी
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