देश में दवाओं की कीमतों को लेकर एक बड़ा खुलासा सामने आया है। दवाओं की अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) अब कंपनियां नहीं, बल्कि डॉक्टर और अस्पताल सं...
देश में दवाओं की कीमतों को लेकर एक बड़ा खुलासा सामने आया है। दवाओं की अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) अब कंपनियां नहीं, बल्कि डॉक्टर और अस्पताल संचालक खुद तय कर रहे हैं। 38 रुपए की लागत वाली दवा की MRP 1200 रुपए तक निर्धारित की जा रही है।
रिपोर्टर अस्पताल संचालक बनकर पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में फैक्ट्रियों और थर्ड पार्टी दवा निर्माताओं से मिले। बातचीत में इन कंपनियों ने साफ कहा कि दवा की पैकिंग से लेकर एक्सपायरी डेट और MRP तक सब कुछ ग्राहक यानी डॉक्टर की मांग के अनुसार तय किया जाता है।
MRP: जितनी चाहो, उतनी बनवा लो
कंपनियों ने स्वीकार किया कि एक गैस की गोली (DSR), जिसकी उत्पादन लागत मात्र 1.10 रुपए है, उसे डॉक्टर 150 रुपए की MRP पर बाजार में बेचते हैं। 70 रुपए में तैयार हुई खांसी की सिरप की MRP 1000 रुपए तक तय की जाती है। एक कंपनी ने बताया कि महज 180 रुपए में तैयार होने वाला एंटीबायोटिक इंजेक्शन डॉक्टर की डिमांड पर 4000 रुपए तक की MRP में बेचा जा सकता है।
सरकार की निगरानी सीमित
भारत सरकार की नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइस अथॉरिटी (NPPA) द्वारा जारी Drug Price Control Order (DPCO) के अंतर्गत केवल आवश्यक और जीवनरक्षक दवाओं की कीमतों पर नियंत्रण होता है। लेकिन सैकड़ों अन्य फॉर्मूले की दवाएं DPCO के बाहर हैं, जिनमें MRP को लेकर मनमानी की जा रही है। कंपनियां एक ही दवा को नए नाम और ब्रांड में लॉन्च कर कीमतें बढ़ा देती हैं।
25 से अधिक कंपनियों से हुई डील
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और उत्तराखंड की 25 से ज्यादा कंपनियों से बातचीत के दौरान उन्होंने MRP ग्राहक की मर्जी से तय करने की बात स्वीकारी। इनमें कुछ प्रमुख नाम हैं: गुरुग्रेस फार्मासिटिकल, फार्माहोपर्स, जेमसन फार्मा, यूनिप्योर, मेडिवेक फार्मा, मिकाल्या लाइफ प्रा. लि. आदि।
दवा निर्माण में मुनाफा, गुणवत्ता से समझौता
कंपनियों के प्रतिनिधियों ने यह भी स्वीकार किया कि मार्जिन बढ़ाने के लिए दवाओं में इस्तेमाल होने वाले माइक्रो पायलट की क्वालिटी को जानबूझकर कम किया जाता है, जिससे दवा की एक्सपायरी घट जाती है। कुछ कंपनियों ने तो यह तक कहा कि एक्सपायरी डेट भी वे खुद तय करते हैं, क्योंकि इस पर सरकारी निगरानी बहुत सीमित है।
दवा उद्योग बना 2 लाख करोड़ का बाजार
विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत में दवा का कारोबार पिछले 20 वर्षों में 40 हजार करोड़ से बढ़कर 2 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। इसका बड़ा कारण MRP के खेल और ब्रांडिंग के नाम पर मरीजों से वसूली को माना जा रहा है। 2005 से 2009 के बीच जहां MRP का 50% मूल्य ही वसूल किया जाता था, वहीं अब डॉक्टर खुद ब्रांड तय कर मरीजों से मनमाना पैसा वसूल रहे हैं।
IMA और एसोसिएशन की प्रतिक्रिया
इस पूरे मामले पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) और फार्मा एसोसिएशनों ने सीधी प्रतिक्रिया से बचते हुए केवल इतना कहा कि सरकार को दवाओं के नियमन और पारदर्शिता को लेकर सख्त कदम उठाने की जरूरत है।
यह खुलासा भारत में हेल्थकेयर सिस्टम से जुड़ी उस गंभीर खामी की ओर इशारा करता है, जहां मुनाफा मरीजों की ज़रूरतों और नैतिकता से ऊपर रखा जा रहा है। ज़रूरत है कि दवा मूल्य नियंत्रण को और व्यापक बनाया जाए ताकि आम जनता को इसका आर्थिक बोझ न उठाना पड़े। यह खुलासा दैनिक भास्कर की एक स्टिंग ऑपरेशन आधारित इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट में हुआ है।
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