जिद्दी रिपोर्टर अपडेट... मध्यप्रदेश: करीब 14 साल बाद प्रदेश में सत्ता पलटी हैं और ऐसी पलटी हैं कि सब उथल पुथल करके रख दिया हैं। एक तरफ...
जिद्दी रिपोर्टर अपडेट...
मध्यप्रदेश: करीब 14 साल बाद प्रदेश में सत्ता पलटी हैं और ऐसी पलटी हैं कि सब उथल पुथल करके रख दिया हैं। एक तरफ भाजपा हैं तो मध्यप्रदेश में आने के फिरसे सुहाने सपने सजोने लगी हैं दूसरी तरफ कमलनाथ सरकार हैं जिसकी गुटबाज़ी खत्म होने का नाम नही ले रही। हैरानी की बात तो यह हैं कि कांग्रेस की प्रदेश स्तरीय टीम भाजपा या अन्य पार्टियों से मुकाबला नही करती हैं लेकिन खुद ही अपने में लड़ाई करती हैं। भाजपा जहां अपने विरोधियों पर निशाना साधती हैं वही कांग्रेस के अंदर ही आपसी में विवाद पर विवाद, लड़ाई पर लड़ाई, पोस्टर वॉर जारी रहता हैं। कभी सिंधिया के समर्थक भोपाल के कांग्रेस कार्यालय के सामने सिंधिया के अध्यक्ष बनने की मांग करते हैं तो कभी दिग्विजय के समर्थक या खुद दिग्विजय अपने आप को प्रदेश का राजा समझ पॉटर पर अपने आप को सूरज चंदा बताते हैं। हाल ही में छिड़े उमंग सिंघार और दिग्विजय के बीच झड़प के तार को भाजपा के नेताओ ने अच्छे से खींचतान कर बजाया था जिसकी बची कूची कसर कांग्रेस के अंदरूनी सपोलों ने ही निकाल ली थी। मध्यप्रदेश कांग्रेस की यह फितरत है की इनके आपस मे ही इतने गुट हैं जैसे घर मे ही दुश्मन तो बाहर वालो की क्या ज़रूरत। वही मुख्यमंत्री कमलनाथ का कभी कभी प्रदेश में दौरा लगता हैं तो थोड़ा सा झांक कर प्रदेश में नज़रे घुमा लेते हैं वरना कमलनाथ को तो दिल्ली ही भाया, ना भाया कोई संसार, केवल कमलनाथ के लिए हैं दिल्ली चलो अभियान। प्रदेश में इतनी तोड़ फोड़ के बाद भी अगर मुख्यमंत्री बाहर दिल्ली में ऐश कर रहा हो तो प्रदेश की हालत ख़्सती और पार्टी की हालत पतली होना मुमकिन हैं।
मध्यप्रदेश: करीब 14 साल बाद प्रदेश में सत्ता पलटी हैं और ऐसी पलटी हैं कि सब उथल पुथल करके रख दिया हैं। एक तरफ भाजपा हैं तो मध्यप्रदेश में आने के फिरसे सुहाने सपने सजोने लगी हैं दूसरी तरफ कमलनाथ सरकार हैं जिसकी गुटबाज़ी खत्म होने का नाम नही ले रही। हैरानी की बात तो यह हैं कि कांग्रेस की प्रदेश स्तरीय टीम भाजपा या अन्य पार्टियों से मुकाबला नही करती हैं लेकिन खुद ही अपने में लड़ाई करती हैं। भाजपा जहां अपने विरोधियों पर निशाना साधती हैं वही कांग्रेस के अंदर ही आपसी में विवाद पर विवाद, लड़ाई पर लड़ाई, पोस्टर वॉर जारी रहता हैं। कभी सिंधिया के समर्थक भोपाल के कांग्रेस कार्यालय के सामने सिंधिया के अध्यक्ष बनने की मांग करते हैं तो कभी दिग्विजय के समर्थक या खुद दिग्विजय अपने आप को प्रदेश का राजा समझ पॉटर पर अपने आप को सूरज चंदा बताते हैं। हाल ही में छिड़े उमंग सिंघार और दिग्विजय के बीच झड़प के तार को भाजपा के नेताओ ने अच्छे से खींचतान कर बजाया था जिसकी बची कूची कसर कांग्रेस के अंदरूनी सपोलों ने ही निकाल ली थी। मध्यप्रदेश कांग्रेस की यह फितरत है की इनके आपस मे ही इतने गुट हैं जैसे घर मे ही दुश्मन तो बाहर वालो की क्या ज़रूरत। वही मुख्यमंत्री कमलनाथ का कभी कभी प्रदेश में दौरा लगता हैं तो थोड़ा सा झांक कर प्रदेश में नज़रे घुमा लेते हैं वरना कमलनाथ को तो दिल्ली ही भाया, ना भाया कोई संसार, केवल कमलनाथ के लिए हैं दिल्ली चलो अभियान। प्रदेश में इतनी तोड़ फोड़ के बाद भी अगर मुख्यमंत्री बाहर दिल्ली में ऐश कर रहा हो तो प्रदेश की हालत ख़्सती और पार्टी की हालत पतली होना मुमकिन हैं।
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