जिद्दी रिपोर्टर अपडेट..... कोरोना महामारी से अर्थव्यवस्था पर होने वाले असर को देखते हुए मई महीने में सरकार ने 20 लाख करोड़ के पै...
जिद्दी रिपोर्टर अपडेट.....
कोरोना महामारी से अर्थव्यवस्था पर होने वाले असर को देखते हुए मई महीने में सरकार ने 20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान किया था. पाँच चरणों में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पैकेज का पूरा विवरण देश के सामने रखा था.
पैकेज में 5.94 लाख करोड़ रुपए की रकम मुख्य तौर पर छोटे व्यवसायों को क़र्ज़ देने और ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और बिजली वितरण कंपनियों की मदद के नाम पर आबंटित करने की घोषणा की गई थी.
पैकेज के ऐलान को तीन महीने हो चुके हैं, अधिकतर जगहों पर बाज़ार खुल गए है, आर्थिक गतिविधियाँ चालू हो रही हैं, लेकिन कोरोना को लेकर अनिश्चितता अभी भी बनी हुई है और अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब है, इसे संभालने के लिए लोग सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं.
आर्थिक मामलों के जानकार आलोक जोशी बताते हैं, “अप्रैल महीने में क़रीब 15 करोड़ लोग बेरोज़गार हो गए थे, इनमें से 12 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र के थे. इनमें से 11 करोड़ लोगों को अब रोज़गार मिल गया है. ये वो लोग थे जो कोई भी काम कर सकते हैं. शहर से गाँव गए, तो वहाँ मनरेगा का काम मिल गया है, इन्हें कुछ काम मिल गया है, यानी सरकार ने जो रोज़गार के लिए पैसे दिए, वो इनके पास पहुँचे और इनका फ़ायदा हो गया.”
मिडिल क्लास और सैलरी वाले लोगों की परेशानियाँ बढ़ गईं, सैलरी पर गुज़ारा करने वाले क़रीब एक करोड़ लोग बेरोज़गार हैं. आलोक जोशी के मुताबिक, “इन्हें जॉब मिलना मुश्किल है, इस कारण से गंभीर संकट का सामना करना पड़ सकता है, हालात के और ख़राब होने के आसार दिख रहे हैं.”
इसके अलावा रेस्तराँ और मॉल में दुकान चलाने वाले या उनमें काम करने वाले लोगों को भी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है. बड़ी कंपनियाँ भी लोगों को निकाल रही हैं. म्यूचल फ़ंड, शेयर मार्केट, इंटरेस्ट रेट में भी लोगों को नुक़सान हुआ है, कई लोग पहले से कम सैलरी में काम कर रहे हैं.
यह एक कारण है कि दुकानें और फ़ैक्टरियों के खुलने के बाद भी डिमांड की कमी है.
लोगों के हाथ में नहीं मिला पैसा
जानकार मानते हैं कि सरकार ने छोटे और मँझले उद्योगों को लोन देकर काम शुरू करवाने में मदद की, कॉरपोरेट टैक्स में भी छूट दी गई. इन सबका फ़ायदा उत्पादन में तो हुआ, लेकिन लोगों के पास पैसे नहीं होने के कारण डिमांड नहीं बढ़ी.
आर्थिक मामलों के जानकार आलम श्रीनिवास ने बीबीसी को बताया, “सरकार ये सोच रही है कि प्रोडक्शन शुरू होगा, लोगों के बीच में डिमांड है, लोग ख़रीदना चाहते हैं और बाहर जाना चाहते हैं. लेकिन अगर उपभोक्ता के हाथ में पैसा ही नहीं है, तो इनका कोई मतलब नहीं बनता.”
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