जिद्दी रिपोर्टर अपडेट..... बात शुरू हुई थी सुशांत सिंह राजपूत की हत्या या आत्महत्या को लेकर। हत्या या आत्महत्या के कारणों की जां...
जिद्दी रिपोर्टर अपडेट.....
बात शुरू हुई थी सुशांत सिंह राजपूत की हत्या या आत्महत्या को लेकर। हत्या या आत्महत्या के कारणों की जांच से शुरू हुआ मामला ना जाने कितने मोड़ों पर घूमते-फिरते एक अलग ही मुकाम पर आ चुका है। जस्टिस फॉर एसएसआर हैशटैग महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के साथ गाली तक पहुँच चुका है। हमारे लिए कोरोना का संघर्ष, चीन की सीमा पर तनाव गौण हो गया है और पूरा देश कुछ मीडिया घरानों के टीआरपी के खेल में उलझ कर मतिभ्रम के दंश का शिकार हो गया है।
आप किसी भी सरकार के कामों से सहमत हो सकते हैं या असहमत भी हो सकते हैं और उसकी निंदा कर सकते हैं। सलाह दे सकते हैं, विरोध को आंदोलन का रूप दे सकते हैं। सोशल मीडिया में अभियान चला सकते हैं, लेकिन व्यक्तिगत रूप से इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करना भारत में तो कहीं भी स्वीकार्य नहीं है। आप जब भारत की नारी और मराठी अस्मिता की बात करते हैं तो यह बात कभी मत भूलिए कि भारत में पिता की उम्र के व्यक्ति को सम्मान देने की परंपरा है। संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को भी उचित सम्मान देने का रिवाज है। यह अनिवार्य भी है। लेकिन जिस तरह से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के बारे में अप शब्द कहे जा रहे हैं 'तू तड़ाक' की भाषा इस्तेमाल की जा रही है, वह बात कहीं भी स्वीकार्य नहीं कही जा सकती।
अच्छी बात यह है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कभी इस तरह के घटिया शब्दों का इस्तेमाल अपने विरोधियों के लिए नहीं किया। राजनीति में गरिमा का अपना महत्त्व होता है। फिल्मों में भी कुछ कलाकार गरिमा का ध्यान रखते हैं, लेकिन कुछ कलाकार गरिमा का ध्यान बिल्कुल नहीं रखते। उनके लिए यह पब्लिसिटी का सुनहरा अवसर होता है।
सुशांत सिंह राजपूत को न्याय मिले, इसके लिए कंगना जांच एजेंसियों की मदद करतीं, अगर उनके पास कोई सबूत होते तो मुहैया करवातीं, वे खुद एक अरबपति सेलेब्रिटी हैं, वे चाहतीं तो मनोरोग पीड़ितों की मदद के लिए जागरूकता अभियान चलातीं, आत्महत्या करने की कोशिश करनेवालों को हौसला देने की कोशिश करतीं, लेकिन उन्होंने इस हत्या या आत्महत्या को अपने व्यक्तिगत प्रचार, प्रतिस्पर्धी कलाकारों पर लांछन लगाने और पूरे फिल्मोद्योग को ही दाऊद के टुकड़ों पर पलनेवाला बताने की कोशिश की। फिल्मों में भाई -भतीजावाद की उन्होंने खूब आलोचना की, लेकिन किसी की आपत्ति आने के बाद ही उन्होंने अपनी बहन रंगोली को अपने मैनेजर के दायित्व से घोषित रूप से अलग किया।
सुशांत सिंह की मौत के बाद कंगना का अभियान सुशांत को न्याय के लिए कम और करन जौहर, साजिद नाडियाडवाला, सलमान खान, महेश भट्ट आदि के खिलाफ शुरू हो गया। कंगना यह बात करने लगीं की जो मेरे साथ नहीं, वह इनका चमचा है। जो मेरा सहयोगी नहीं, वह दाऊद का गुलाम है। अमिताभ बच्चन से लेकर नसीरुद्दीन शाह तक के बारे में 'निर्णायक' टिप्पणी करने वाली अभिनेत्री ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के बारे में भी अभियान चला डाला।
बाद में मुंबई में शिव सेना के वर्चस्व वाली मुंबई महानगरपालिका ने अभिनेत्री के बांद्रा स्थित कार्यालय में कथित अवैध निर्माण का अंश तोड़ डाला। इस पर उन्होंने अपने कथित अवैध निर्माण को राम मंदिर और मुख्यमंत्री को बाबर करार कर दिया। मुंबई को उन्होंने पीओके बता दिया, जहाँ हिन्दुओं की सुरक्षा खतरे में है। अवैध निर्माण मामले में न्यायालय सुनवाई कर रहा है, उसके बारे में मुझे कुछ नहीं कहना। लेकिन अगर मुंबई महानगरपालिका शाहरुख खान का अवैध निर्माण तोड़ सकती है, अमिताभ बच्चन के अवैध निर्माण पर रोक लगा सकती है। कपिल शर्मा और शत्रुघ्न सिन्हा के अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चला सकती है तो कंगना राणावत के अवैध निर्माण पर क्यों नहीं ? और कंगना राणावत का कार्यालय राम मंदिर हो गया तो क्या बाकी कलाकारों के निर्माण बाबरी ढांचा थे?
यह बड़ी विचित्र मानसिकता है कि मैं ही भारत हूं। मैं ही नारी हूं। मेरा सम्मान करो। मैं किसी की भी बेइज्जती करूँ, लेकिन मेरे पास नारी होने का तुरुप का पत्ता है। मैंने झांसी की रानी का रोल अदा किया था। तो क्या झांसी की रानी हो गई? अरे भाई ,आपने तो रज्जो फिल्म में कोठे वाली की भूमिका की थी तो क्या कोई यह नहीं कहता कि आप रज्जो बन गई है? राज़ में भूतनी बनीं थीं तो क्या भूतनी हो गईं? ऋतिक या दिलीप कुमार ने अकबर का रोल किया था तो क्या वे अकबर बादशाह हो गए? आपको पूरा सम्मान प्राप्त है। भारत में हर नारी का सम्मान है और होना भी चाहिए। चाहे वह किसी भी राज्य की हो, किसी भी देश की हो। कभी सोनिया गांधी के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या अमित शाह के कोई अप शब्द किसी ने कहीं सुने हैं? नहीं, क्योंकि राजनीति की अपनी मर्यादा
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