जिद्दी रिपोर्टर अपडेट..... संवाददाता-विवेक चौबे गढवा : श्री रामलला मन्दिर में आयोजित श्री कथा ज्ञान महायज्ञ में सनातन धर्मावलम्बि...
जिद्दी रिपोर्टर अपडेट.....
संवाददाता-विवेक चौबे
गढवा : श्री रामलला मन्दिर में आयोजित श्री कथा ज्ञान महायज्ञ में सनातन धर्मावलम्बियों को सम्बोधित करते हुए जगत गुरु छतीसगढ़ पीठाधीतेश्वर श्री श्री 1008 ब्रह्मदेवाचार्य जी महाराज ने रविवार को राक्षसों के निर्माणशाला लंका में भगवान श्री राम के हाथों सनातन धर्म की पुनः स्थापना की रोचक व प्रेरणादायी कथा सुनाई। ब्रह्मदेवाचार्य जी ने कहा कि भगवान श्री राम लंका से उत्पन्न हुए राक्षसी प्रवृत्ति से प्रभावित हो रही दुनिया को बचाने के लिए एक सुनियोजित योजना के तहत अयोध्या से बाहर निकले थे। जंगल के जिस किसी रास्ते से वे गुजरते थे,वहां राक्षसों का अन्याय सामने होता था। जंगलों में आराधना कर रहे ऋषि-महर्षि को राक्षस मारते-पीटते व उनकी हत्या कर रहे थे। चारों ओर धर्म को समाप्त करने की उनकी प्रवृत्ति बढ़ रही थी। राक्षसी प्रवृत्ति का केंद्र लंका था,जिसका राजा रावण था। रावण को समाप्त कर राक्षसी प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए भगवान श्रीराम देव रचित नाटक के अनुरूप आगे बढ़ रहे थे। उधर रावण को भी अपने अन्याय की ओरकाष्ठ का अनुभव होने लगा था। उसे यह लगने लगा था कि अब प्रार्थना व ध्यान से उसका पाप समाप्त होने वाला नहीं है। ईश्वर के हाथों मरने से ही उसे मोक्ष प्राप्त होने वाला है। इसी उद्देश्य को लेकर उसने अपने कई भाइयों को राम के सामने लड़ने के लिए भेजा ताकि श्रीराम इतने गुस्से में आ जाए कि वे उसे मारने लंका पहुंच जाएं। इसी क्रम में अपने एक भाई मारीच को मृगनयनी बनाकर भगवान राम की कुटिया की ओर भेजा। ताकि भगवान राम मृगनयनी के पीछे भागे व वह सीता का हरण कर ले। हुआ भी यही। भगवान राम सीता जी के कहने पर सुंदर मृग नैनी को मारकर उसकी छाल को कुटिया में लगाना चाहते थे। श्री राम मृग के पीछे बढ़ चले। उधर मृग ने भी अपनी माया दिखाते हुए भगवान राम को काफी दूर ले जाती है। भगवान राम उसे पहचान लेते हैं कि वह राक्षस है। वह उसे अपने बाण से घायल करते हैं। मृग के वेष में मारीच श्री राम की कराहते हुए आवाज में लक्षमण-लक्ष्मण की रट लगाता है, ताकि सीता को लगे कि श्री राम घोर संकट में हैं। हुआ भी यही। सीता जबरन लक्ष्मण जी को राम के सहयोग के लिए भेजती हैं। उधर रावण ब्राह्मण के भेष में कुटिया में आकर सीता जी को हरण कर लेता है। सीता जी को हरण कर लंका में जाने व वहां राक्षसों का उनके साथ व्यवहार को इस रूप में कथा के माध्यम से श्री ब्रह्मदेवाचार्य जी ने कहा कि रावण का वध अब जरूरी हो गया है। भगवान राम ने रावण का वध कर लंका में पुनः सनातन धर्म की स्थापना की। रावण के धर्मज्ञ भाई व राक्षसों के बीच धर्म से धारण किये रहने वाले अपने अनन्य भक्त विभीषण को लंका का राजकाज सौंप दिया। भगवान ने उन्हें लंका में राक्षसी प्रवृति का पूर्णतया सफाया करने व पूरे क्षेत्र में सनातन का ध्वज लहराते रहने को कहा। प्रवचन कार्यक्रम में संरक्षक- बैजनाथ सिंह, श्यामानंद पांडेय,सुभाष प्रसाद केसरी, कृष्ण मुरारी पांडेय, उपाध्यक्ष- सुदर्शन सिंह, सचिव- धनंजय सिंह, कोषाध्यक्ष- धनंजय गोंड, कार्यालय मंत्री- धनंजय ठाकुर,अखिलेश्वर कुमार सहित काफी संख्या में लोग उपस्थित थे। प्रवचन कार्यक्रम का संचालन युवा समाजसेवी, ओजस्वी, तेजस्वी प्रखर कर्मकांडी प्रोफेसर आशीष वैद्य ने किया।भगवान श्री राम की आरती व प्रसाद वितरण के बाद प्रवचन कार्यक्रम संपन्न हुआ।
संवाददाता-विवेक चौबे
गढवा : श्री रामलला मन्दिर में आयोजित श्री कथा ज्ञान महायज्ञ में सनातन धर्मावलम्बियों को सम्बोधित करते हुए जगत गुरु छतीसगढ़ पीठाधीतेश्वर श्री श्री 1008 ब्रह्मदेवाचार्य जी महाराज ने रविवार को राक्षसों के निर्माणशाला लंका में भगवान श्री राम के हाथों सनातन धर्म की पुनः स्थापना की रोचक व प्रेरणादायी कथा सुनाई। ब्रह्मदेवाचार्य जी ने कहा कि भगवान श्री राम लंका से उत्पन्न हुए राक्षसी प्रवृत्ति से प्रभावित हो रही दुनिया को बचाने के लिए एक सुनियोजित योजना के तहत अयोध्या से बाहर निकले थे। जंगल के जिस किसी रास्ते से वे गुजरते थे,वहां राक्षसों का अन्याय सामने होता था। जंगलों में आराधना कर रहे ऋषि-महर्षि को राक्षस मारते-पीटते व उनकी हत्या कर रहे थे। चारों ओर धर्म को समाप्त करने की उनकी प्रवृत्ति बढ़ रही थी। राक्षसी प्रवृत्ति का केंद्र लंका था,जिसका राजा रावण था। रावण को समाप्त कर राक्षसी प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए भगवान श्रीराम देव रचित नाटक के अनुरूप आगे बढ़ रहे थे। उधर रावण को भी अपने अन्याय की ओरकाष्ठ का अनुभव होने लगा था। उसे यह लगने लगा था कि अब प्रार्थना व ध्यान से उसका पाप समाप्त होने वाला नहीं है। ईश्वर के हाथों मरने से ही उसे मोक्ष प्राप्त होने वाला है। इसी उद्देश्य को लेकर उसने अपने कई भाइयों को राम के सामने लड़ने के लिए भेजा ताकि श्रीराम इतने गुस्से में आ जाए कि वे उसे मारने लंका पहुंच जाएं। इसी क्रम में अपने एक भाई मारीच को मृगनयनी बनाकर भगवान राम की कुटिया की ओर भेजा। ताकि भगवान राम मृगनयनी के पीछे भागे व वह सीता का हरण कर ले। हुआ भी यही। भगवान राम सीता जी के कहने पर सुंदर मृग नैनी को मारकर उसकी छाल को कुटिया में लगाना चाहते थे। श्री राम मृग के पीछे बढ़ चले। उधर मृग ने भी अपनी माया दिखाते हुए भगवान राम को काफी दूर ले जाती है। भगवान राम उसे पहचान लेते हैं कि वह राक्षस है। वह उसे अपने बाण से घायल करते हैं। मृग के वेष में मारीच श्री राम की कराहते हुए आवाज में लक्षमण-लक्ष्मण की रट लगाता है, ताकि सीता को लगे कि श्री राम घोर संकट में हैं। हुआ भी यही। सीता जबरन लक्ष्मण जी को राम के सहयोग के लिए भेजती हैं। उधर रावण ब्राह्मण के भेष में कुटिया में आकर सीता जी को हरण कर लेता है। सीता जी को हरण कर लंका में जाने व वहां राक्षसों का उनके साथ व्यवहार को इस रूप में कथा के माध्यम से श्री ब्रह्मदेवाचार्य जी ने कहा कि रावण का वध अब जरूरी हो गया है। भगवान राम ने रावण का वध कर लंका में पुनः सनातन धर्म की स्थापना की। रावण के धर्मज्ञ भाई व राक्षसों के बीच धर्म से धारण किये रहने वाले अपने अनन्य भक्त विभीषण को लंका का राजकाज सौंप दिया। भगवान ने उन्हें लंका में राक्षसी प्रवृति का पूर्णतया सफाया करने व पूरे क्षेत्र में सनातन का ध्वज लहराते रहने को कहा। प्रवचन कार्यक्रम में संरक्षक- बैजनाथ सिंह, श्यामानंद पांडेय,सुभाष प्रसाद केसरी, कृष्ण मुरारी पांडेय, उपाध्यक्ष- सुदर्शन सिंह, सचिव- धनंजय सिंह, कोषाध्यक्ष- धनंजय गोंड, कार्यालय मंत्री- धनंजय ठाकुर,अखिलेश्वर कुमार सहित काफी संख्या में लोग उपस्थित थे। प्रवचन कार्यक्रम का संचालन युवा समाजसेवी, ओजस्वी, तेजस्वी प्रखर कर्मकांडी प्रोफेसर आशीष वैद्य ने किया।भगवान श्री राम की आरती व प्रसाद वितरण के बाद प्रवचन कार्यक्रम संपन्न हुआ।
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