जिद्दी रिपोर्टर अपडेट..... अपनी बात से मुकरने और धोखे से हमला करने में उस्ताद चीन और उनके राष्ट्रपति शी-जिनपिंग ने एक बार फिर दिखा दिया...
जिद्दी रिपोर्टर अपडेट.....
अपनी बात से मुकरने और धोखे से हमला करने में उस्ताद चीन और उनके राष्ट्रपति शी-जिनपिंग ने एक बार फिर दिखा दिया कि उस पर ऐतबार करोगे तो मुंह की खाओगे। 1962 में उसने भारत पर हमला करके देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की छवि खंडित की थी। इस बार उसने यह काम नरेंद्र दास मोदी के साथ किया है जो पंडित नेहरू की ही तरह विश्व फलक पर चमक रहे थे।
कूटनीति के मैदान में यह तथ्य सर्वविदित है कि कोई भी बड़ा नेता अपने आसपास किसी बड़े नेता को फटकने नहीं देना चाहता। परमाणू शक्ति संपन्न चीन ने 21 सदी के इस युग मेंं परमाणू संपन्न भारत को मल्ल युद्ध में पटकनी देकर उसकी देश के भीतर और बाहर छवि खंडित करने की कोशिश की है। बीते छह साल में भारत में दक्षिणपंथी भाजपा की सरकार और उसके मजबूत नेता नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में माओ वादियों से लेकर वामपंथी विचारधारा पर जिस तरह से हमला हुआ है उसके पलटवार के रूप में चीन के इस कदम को देखा जा रहा है। सवाल यही है कि क्या चीन ने भारत की घरेलू राजनीति में नरेंद्र मोदी को कमजोर करने के लिए यह किया है। राष्ट्रहित के इस गंभीर और अत्यंत संवदेदनशील मौके कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का जल्दबाजी भरा जो बयान आया है उससे चीन का एक मकसद तो सिद्ध हो गया लगता है। यह भी साफ है कि कांग्रेस और भाजपा विरोधी वामपंथी राष्ट्र संकट की इस घड़ी में किस तरह की सियासत खेलने वाले हैं। राहुल ने पूछा है कि प्रधानमंत्री मोदी इस मौके पर कहां छुपकर बैठे हैं?
चीन ने 1975 में अरूणाचल प्रदेश की में घात लगाकर असम रायफल्स के चार जवानों को मारा था। इस बार उसने भारत में चल रहे चीनी सामान के बहिष्कार की धमकी तथा भारतीय सेना प्रमुख विपिन रावत और अन्य भाजपा नेताओं की इस घुडक़ी का भी जवाब दिया है कि यह 1962 वाला भारत नहीं है। चीन यह साबित करना चाहता है कि वह आज भी उसके सामने 1962 वाला इंडिया ही है। प्रकारांतर से यह संदेश भी है कि अमेरिका की दम पर भारत ज्यादा नहीं उछले।
पड़ोसी देश पाकिस्तान को तो वह बरसों से भारत के खिलाफ हवा दे ही रहा है। इस बार भारत को सबक सिखाने के पहले उसने नेपाल में हवा भरी जिसकी दम पर उसने नक्शेबाजी संसद में पारित कराकर हिंदुस्तान को आंख दिखाने की कोशिश की है। चीन को कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद पाक अधिकृत कश्मीर में भारत के दखल बढऩे का खतरा दिख रहा है, जो उसके पाकिस्तान और पीओके से गुजरते इकॉनामिक कारीडोर पर असर जाल सकता है। चीन के खिलाफ भारत ने कारोबारी स्तर पर पिछले दिनों जो कदम उठाएं हैं उसको देखते हुए भी वह भारत के बहाने मोदी पर पलटवार करना चाहता है। सारा कुछ करने के बाद चीन ने सारा ठीकरा भारत के सिर पर ही फोड़ दिया है
अब आने वाले दो दिन बेहद अहम हैं। पहला तो भारत छह हफ्तों से सीमा पर चल रहे ताजा तनाव को कम करने के लिए सैन्य अधिकारियों के स्तर की बातचीत जारी रखे या फिर कूटनीतिज्ञों के स्तर पर बातचीत करके तनाव कम करे। दूसरा यह कि अभी तक भारत-चीन के इस मल्ल युद्ध पर अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों का कोई बयान नहीं आया है।पर जो कुछ भी हो इस मसले पर अगले कुछ दिन मोदी के लिए कठिन परीक्षा की घड़ी लेकर आने वाले हैं।
अपनी बात से मुकरने और धोखे से हमला करने में उस्ताद चीन और उनके राष्ट्रपति शी-जिनपिंग ने एक बार फिर दिखा दिया कि उस पर ऐतबार करोगे तो मुंह की खाओगे। 1962 में उसने भारत पर हमला करके देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की छवि खंडित की थी। इस बार उसने यह काम नरेंद्र दास मोदी के साथ किया है जो पंडित नेहरू की ही तरह विश्व फलक पर चमक रहे थे।
कूटनीति के मैदान में यह तथ्य सर्वविदित है कि कोई भी बड़ा नेता अपने आसपास किसी बड़े नेता को फटकने नहीं देना चाहता। परमाणू शक्ति संपन्न चीन ने 21 सदी के इस युग मेंं परमाणू संपन्न भारत को मल्ल युद्ध में पटकनी देकर उसकी देश के भीतर और बाहर छवि खंडित करने की कोशिश की है। बीते छह साल में भारत में दक्षिणपंथी भाजपा की सरकार और उसके मजबूत नेता नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में माओ वादियों से लेकर वामपंथी विचारधारा पर जिस तरह से हमला हुआ है उसके पलटवार के रूप में चीन के इस कदम को देखा जा रहा है। सवाल यही है कि क्या चीन ने भारत की घरेलू राजनीति में नरेंद्र मोदी को कमजोर करने के लिए यह किया है। राष्ट्रहित के इस गंभीर और अत्यंत संवदेदनशील मौके कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का जल्दबाजी भरा जो बयान आया है उससे चीन का एक मकसद तो सिद्ध हो गया लगता है। यह भी साफ है कि कांग्रेस और भाजपा विरोधी वामपंथी राष्ट्र संकट की इस घड़ी में किस तरह की सियासत खेलने वाले हैं। राहुल ने पूछा है कि प्रधानमंत्री मोदी इस मौके पर कहां छुपकर बैठे हैं?
चीन ने 1975 में अरूणाचल प्रदेश की में घात लगाकर असम रायफल्स के चार जवानों को मारा था। इस बार उसने भारत में चल रहे चीनी सामान के बहिष्कार की धमकी तथा भारतीय सेना प्रमुख विपिन रावत और अन्य भाजपा नेताओं की इस घुडक़ी का भी जवाब दिया है कि यह 1962 वाला भारत नहीं है। चीन यह साबित करना चाहता है कि वह आज भी उसके सामने 1962 वाला इंडिया ही है। प्रकारांतर से यह संदेश भी है कि अमेरिका की दम पर भारत ज्यादा नहीं उछले।
पड़ोसी देश पाकिस्तान को तो वह बरसों से भारत के खिलाफ हवा दे ही रहा है। इस बार भारत को सबक सिखाने के पहले उसने नेपाल में हवा भरी जिसकी दम पर उसने नक्शेबाजी संसद में पारित कराकर हिंदुस्तान को आंख दिखाने की कोशिश की है। चीन को कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद पाक अधिकृत कश्मीर में भारत के दखल बढऩे का खतरा दिख रहा है, जो उसके पाकिस्तान और पीओके से गुजरते इकॉनामिक कारीडोर पर असर जाल सकता है। चीन के खिलाफ भारत ने कारोबारी स्तर पर पिछले दिनों जो कदम उठाएं हैं उसको देखते हुए भी वह भारत के बहाने मोदी पर पलटवार करना चाहता है। सारा कुछ करने के बाद चीन ने सारा ठीकरा भारत के सिर पर ही फोड़ दिया है
अब आने वाले दो दिन बेहद अहम हैं। पहला तो भारत छह हफ्तों से सीमा पर चल रहे ताजा तनाव को कम करने के लिए सैन्य अधिकारियों के स्तर की बातचीत जारी रखे या फिर कूटनीतिज्ञों के स्तर पर बातचीत करके तनाव कम करे। दूसरा यह कि अभी तक भारत-चीन के इस मल्ल युद्ध पर अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों का कोई बयान नहीं आया है।पर जो कुछ भी हो इस मसले पर अगले कुछ दिन मोदी के लिए कठिन परीक्षा की घड़ी लेकर आने वाले हैं।
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