जिद्दी रिपोर्टर अपडेट.... जाने माने कहानीकार एवं उपन्यासकार एवं आईएएस तरुण भटनागर का नया उपन्यास 'बेदावा ' इन दिनों चर्चा में ...
जिद्दी रिपोर्टर अपडेट....
जाने माने कहानीकार एवं उपन्यासकार एवं आईएएस तरुण भटनागर का नया उपन्यास 'बेदावा ' इन दिनों चर्चा में है. 'लौटती नहीं जो हँसी' और 'राजा, जंगल और काला चाँद' के बाद यह उनका तीसरा उपन्यास है. उपन्यास राजकमल प्रकाशन से इसी वर्ष आया है. उपन्यास के कवर पर इसे प्रेमकथा बताया गया है.पर सिर्फ एक प्रेमकथा होने से इतर इस उपन्यास की कई ध्वनियाँ हैं, कई रंग हैं. यह इस उपन्यास की एक ऐसी विशेषता है जिससे यह दूसरे उपन्यासों से अलग और एक सशक्त मुकाम हासिल करता है.
उपन्यास के लिए रोचकता एक ऐसा तत्व है जो इस विधा में लिखी किसी किताब को पढ़वा ले जाने के लिए बेहद जरूरी है. उपन्यास अपने आकार में बड़े होते हैं इसलिए भी यह जरूरी है कि वे इतने रोचक तो हों ही कि खुद को पढ़वा ले जाने का सामर्थ्य रखते हों. रोचकता सबसे अहम पैमाना न हो तब भी यह इस लिहाज़ से भी जरूरी है कि पाठक को बांधे रखकर ही उपन्यास के मर्म को उस तक पहुँचाया जा सकता है. इस पैमाने पर यह उपन्यास खरा उतरता है. आज के दौर में रोचकता विहीन उपन्यासों की बाढ़ में यह उपन्यास अपनी प्रवाहमय किस्सागोई के मार्फ़त बेहद जरूरी विषय को पाठकों के सामने रखने की वजह से अलग से पहचाना जा सकता है. पढ़ने के जिस लालित्य की खोज पाठक करता है वह इस उपन्यास में भरपूर है.
हमारे समाज में साम्प्रदायिकता जिस तरह से पैर पसारती रही है और नफरतों के अपने इरादों को पालती-पोसती रही है उसके ख़िलाफ़ प्रेम और इंसानियत के फलसफे को बहुत मजबूती से यह उपन्यास रखता है. नफरतों के ख़िलाफ़ प्रेम का किस्सा यूँ तो कई रचनाओं में देखने को मिलता है, विभिन्न भाषाओं के साहित्य में इस विषय पर कई रचनाएँ हैं, पर यह उपन्यास इस पूरे विषय को जिस तरह से बरतता है वह निश्चय ही एक गौर किये जाने योग्य बात है. इसकी कथा और बुनावट बेहद अलग है. जो प्रेमकथा है, जिसके गिर्द यह चलता है वह परंपरागत प्रेम कथाओं से काफी अलग है. साथ ही जिस तरह की शानदार किस्सागोई इसमें है वह बहुत कम रचनाओं में देखने-पढ़ने को मिलती है.
उपन्यास का वितान विविध रंगों वाला है. इसमें आधुनिक भारत के नगर, मोहल्लों, स्पेन की दुनिया, जंगलों के इलाके और ग़ुरबत में जीने को मजबूर लोगों के जहान की तमाम कहानियाँ हैं , जो तमाम अलग-अलग परिवेश की दुनिया से होकर गुजरती हैं . उपन्यास में दृश्य और आख्यान इस तरह आते हैं कि सारा नज़ारा साक्षात दीखता है. हिंदुस्तानी ज़बान के प्रयोग से इस उपन्यास को गजब का प्रवाह मिलता है जिससे इसे पढ़ते चले जाने का मन करता है. दृश्य और जगहों के साथ-साथ इसके पात्रों में भी एक अलग किस्म का वैविध्य है. अपर्णा, सुधीर, कैमिला और अदीब अलग-अलग दुनिया के लोग हैं. उनकी बोलचाल, पहरावा उढ़ावा, उनके सुख-दुःख और उनकी दुनिया एक दूसरे से जुदा है पर प्रेम और दोस्ती का फ़लसफ़ा उन्हें जोड़े रखता है. उपन्यासकार तरुण भटनागर की विशेषता है कि वे पात्र की दुनिया को इस तरह हू-ब -हू लिखते हैं कि उसके एक्शन, बातें और उसकी पूरी बनक जीवित हो उठती है. उपन्यास का पात्र सुधीर दृष्टिहीन है. वह एक खूबसूरत लड़की जिसका नाम अपर्णा है उससे मोहब्बत करता है. दिक्कत यह है कि अपर्णा खूबसूरत है और उसे चाहने वाला दृष्टिहीन, याने वह उसे नहीं देख सकता है और नहीं जान सकता है कि वह कैसी दीखती है, कितनी खूबसूरत है. इसी बिंदु से यह उपन्यास शुरू होता है. उपन्यास की कहानी बेहद रोचक है और इस उपन्यास के मार्फ़त एक लम्बे वक्त के बाद किस्सागोई को , बतकही को इस तरह औपन्यासिक फलक पर आता हुआ देखा जा रहा है.
किसी उपन्यास पर बात करते वक्त उसकी कथा का खुलासा करना ठीक नहीं होता है इसलिए सिर्फ ऐसा कहना ही पर्याप्त होगा कि प्रेम जैसे जटिल विषय पर होते हुए भी बेहद रोचक कथानक से लबरेज यह उपन्यास एक शानदार उपन्यास है. लेखन में एक किस्म का शायरानापन और उर्दू का प्रयोग इसे और भी खूबसूरत बना देता है. पूरे उपन्यास में कहन का, बातों को बरतने का अपना एक तरीका है. उपन्यास में यह कहन बदलता जाता है. तमाम बातों का जिक्र और अंदाज़े बयाँ एकहरा नहीं है. उनमें कोई दुहराव भी नहीं है. पैरा दर पैरा बदलते दृश्य और बदलते किस्से के साथ कहन और अंदाज़े बयाँ भी बदलता है. स्पेन के एलीकेंट शहर का विवरण इतना जीवंत और काव्यात्मक है कि पाठक को लगता है मनो वह इस शहर से गुजर रहा हो या लेखक के लिखे के माध्यम से उस शहर को देख रहा हो. प्रेम पर लिखते वक्त एक किस्म की वल्गेरिटी और फूहड़पन का प्रयोग इधर काफी हुआ है, पर यह उपन्यास इस सबसे दूर, प्रेम के फलसफे और इंसानियत के जज्बे की ओर मुख़ातिब होता है. अपर्णा इस उपन्यास का केंद्रीय चरित्र है.अपने दब्बू और संकोची व्यवहार को छोड़कर कैसे वह जिंदगी के अहम फैसले लेने वाली एक मजबूत लड़की बनती है इसे ब-खूबी इस उपन्यास में दिखाया गया है. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस साल प्रकाशित यह उपन्यास 'बेदावा ' एक श्रेष्ठ उपन्यास है. अपनी पठनीयता, रोचकता और एक सार्थक विषय पर केंद्रित होने के कारण इसे अवश्य ही पढ़ा जाना चाहिए.
उपन्यास - बेदावा
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन
मूल्य - 160 रुपये
- एम. एम. नरेश
जाने माने कहानीकार एवं उपन्यासकार एवं आईएएस तरुण भटनागर का नया उपन्यास 'बेदावा ' इन दिनों चर्चा में है. 'लौटती नहीं जो हँसी' और 'राजा, जंगल और काला चाँद' के बाद यह उनका तीसरा उपन्यास है. उपन्यास राजकमल प्रकाशन से इसी वर्ष आया है. उपन्यास के कवर पर इसे प्रेमकथा बताया गया है.पर सिर्फ एक प्रेमकथा होने से इतर इस उपन्यास की कई ध्वनियाँ हैं, कई रंग हैं. यह इस उपन्यास की एक ऐसी विशेषता है जिससे यह दूसरे उपन्यासों से अलग और एक सशक्त मुकाम हासिल करता है.
उपन्यास के लिए रोचकता एक ऐसा तत्व है जो इस विधा में लिखी किसी किताब को पढ़वा ले जाने के लिए बेहद जरूरी है. उपन्यास अपने आकार में बड़े होते हैं इसलिए भी यह जरूरी है कि वे इतने रोचक तो हों ही कि खुद को पढ़वा ले जाने का सामर्थ्य रखते हों. रोचकता सबसे अहम पैमाना न हो तब भी यह इस लिहाज़ से भी जरूरी है कि पाठक को बांधे रखकर ही उपन्यास के मर्म को उस तक पहुँचाया जा सकता है. इस पैमाने पर यह उपन्यास खरा उतरता है. आज के दौर में रोचकता विहीन उपन्यासों की बाढ़ में यह उपन्यास अपनी प्रवाहमय किस्सागोई के मार्फ़त बेहद जरूरी विषय को पाठकों के सामने रखने की वजह से अलग से पहचाना जा सकता है. पढ़ने के जिस लालित्य की खोज पाठक करता है वह इस उपन्यास में भरपूर है.
हमारे समाज में साम्प्रदायिकता जिस तरह से पैर पसारती रही है और नफरतों के अपने इरादों को पालती-पोसती रही है उसके ख़िलाफ़ प्रेम और इंसानियत के फलसफे को बहुत मजबूती से यह उपन्यास रखता है. नफरतों के ख़िलाफ़ प्रेम का किस्सा यूँ तो कई रचनाओं में देखने को मिलता है, विभिन्न भाषाओं के साहित्य में इस विषय पर कई रचनाएँ हैं, पर यह उपन्यास इस पूरे विषय को जिस तरह से बरतता है वह निश्चय ही एक गौर किये जाने योग्य बात है. इसकी कथा और बुनावट बेहद अलग है. जो प्रेमकथा है, जिसके गिर्द यह चलता है वह परंपरागत प्रेम कथाओं से काफी अलग है. साथ ही जिस तरह की शानदार किस्सागोई इसमें है वह बहुत कम रचनाओं में देखने-पढ़ने को मिलती है.
उपन्यास का वितान विविध रंगों वाला है. इसमें आधुनिक भारत के नगर, मोहल्लों, स्पेन की दुनिया, जंगलों के इलाके और ग़ुरबत में जीने को मजबूर लोगों के जहान की तमाम कहानियाँ हैं , जो तमाम अलग-अलग परिवेश की दुनिया से होकर गुजरती हैं . उपन्यास में दृश्य और आख्यान इस तरह आते हैं कि सारा नज़ारा साक्षात दीखता है. हिंदुस्तानी ज़बान के प्रयोग से इस उपन्यास को गजब का प्रवाह मिलता है जिससे इसे पढ़ते चले जाने का मन करता है. दृश्य और जगहों के साथ-साथ इसके पात्रों में भी एक अलग किस्म का वैविध्य है. अपर्णा, सुधीर, कैमिला और अदीब अलग-अलग दुनिया के लोग हैं. उनकी बोलचाल, पहरावा उढ़ावा, उनके सुख-दुःख और उनकी दुनिया एक दूसरे से जुदा है पर प्रेम और दोस्ती का फ़लसफ़ा उन्हें जोड़े रखता है. उपन्यासकार तरुण भटनागर की विशेषता है कि वे पात्र की दुनिया को इस तरह हू-ब -हू लिखते हैं कि उसके एक्शन, बातें और उसकी पूरी बनक जीवित हो उठती है. उपन्यास का पात्र सुधीर दृष्टिहीन है. वह एक खूबसूरत लड़की जिसका नाम अपर्णा है उससे मोहब्बत करता है. दिक्कत यह है कि अपर्णा खूबसूरत है और उसे चाहने वाला दृष्टिहीन, याने वह उसे नहीं देख सकता है और नहीं जान सकता है कि वह कैसी दीखती है, कितनी खूबसूरत है. इसी बिंदु से यह उपन्यास शुरू होता है. उपन्यास की कहानी बेहद रोचक है और इस उपन्यास के मार्फ़त एक लम्बे वक्त के बाद किस्सागोई को , बतकही को इस तरह औपन्यासिक फलक पर आता हुआ देखा जा रहा है.
किसी उपन्यास पर बात करते वक्त उसकी कथा का खुलासा करना ठीक नहीं होता है इसलिए सिर्फ ऐसा कहना ही पर्याप्त होगा कि प्रेम जैसे जटिल विषय पर होते हुए भी बेहद रोचक कथानक से लबरेज यह उपन्यास एक शानदार उपन्यास है. लेखन में एक किस्म का शायरानापन और उर्दू का प्रयोग इसे और भी खूबसूरत बना देता है. पूरे उपन्यास में कहन का, बातों को बरतने का अपना एक तरीका है. उपन्यास में यह कहन बदलता जाता है. तमाम बातों का जिक्र और अंदाज़े बयाँ एकहरा नहीं है. उनमें कोई दुहराव भी नहीं है. पैरा दर पैरा बदलते दृश्य और बदलते किस्से के साथ कहन और अंदाज़े बयाँ भी बदलता है. स्पेन के एलीकेंट शहर का विवरण इतना जीवंत और काव्यात्मक है कि पाठक को लगता है मनो वह इस शहर से गुजर रहा हो या लेखक के लिखे के माध्यम से उस शहर को देख रहा हो. प्रेम पर लिखते वक्त एक किस्म की वल्गेरिटी और फूहड़पन का प्रयोग इधर काफी हुआ है, पर यह उपन्यास इस सबसे दूर, प्रेम के फलसफे और इंसानियत के जज्बे की ओर मुख़ातिब होता है. अपर्णा इस उपन्यास का केंद्रीय चरित्र है.अपने दब्बू और संकोची व्यवहार को छोड़कर कैसे वह जिंदगी के अहम फैसले लेने वाली एक मजबूत लड़की बनती है इसे ब-खूबी इस उपन्यास में दिखाया गया है. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस साल प्रकाशित यह उपन्यास 'बेदावा ' एक श्रेष्ठ उपन्यास है. अपनी पठनीयता, रोचकता और एक सार्थक विषय पर केंद्रित होने के कारण इसे अवश्य ही पढ़ा जाना चाहिए.
उपन्यास - बेदावा
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन
मूल्य - 160 रुपये
- एम. एम. नरेश
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