जिद्दी रिपोर्टर अपडेट..... शिवपुरी का घिनौना सच •महामारी में व्यवस्थाओं का दोहरापन आम और खास के लिए अलग अलग गाइडलाइन •अस्पताल ...
जिद्दी रिपोर्टर अपडेट.....
शिवपुरी का घिनौना सच
•महामारी में व्यवस्थाओं का दोहरापन आम और खास के लिए अलग अलग गाइडलाइन
•अस्पताल में जो दुत्कारे जा रहे हैं फीस लेकर वही पुचकारे जा रहे हैं_
खरी खरी/ संजय बेचैन
शिवपुरी जिला भगवान भरोसे है प्रशासन से लेकर प्रशासन तक किसी को यहां के हालातों से कोई लेना-देना नजर नहीं आ रहा। मंगलवार को शिवपुरी निवासी एक 35 वर्षीय महिला की भी उपचार के दौरान ग्वालियर में मौत हो गई। यहां बता दें कि पिछले 6 दिन से लगातार क्रम में मौतों का सिलसिला जारी है इन 6 दिनों में ही 9 लोग अपनी जान गवा चुके हैं तकनीकी कारणों को छोड़ दें तो मृतकों का कुल आंकड़ा 35 के पार है। 17 सितंबर से 22 सितंबर तक 9 लोगों की जान गई है और यह सभी मरने वाले कोरोना का शिकार हुए हैं। लोग मर रहे हैं लेकिन स्वास्थ्य विभाग के कानों पर जूं भी नहीं रेंग रही। यहां मेडिकल सेक्टर में सिर्फ कमाई के जरिए ढूंढे जा रहे हैं। लोगों को भ्रमित करने के लिए शिवपुरी में मेडिकल कॉलेज का भवन खड़ा कर दिया गया है लेकिन उसमें से चिकित्सकों की आत्मा निकाल दी गई है। डॉक्टर जो मेडिकल कॉलेज में पदस्थ हुए उनमें से अधिकांश अपना धंधा इस महामारी के दौर में सेक रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग में ऐसे दागी चरित्र अधिकारियों की पदस्थापना यहां की गई है जिन्हें एक मिनिट भी कुर्सी पर टिकने का नैतिक अधिकार नहीं। दोनों हाथों से जनता का पैसा मनवाने अंदाज में उलीचा जा रहा है और लोग गिड़गिड़ा रहे हैं मर रहे हैं लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं। एक नजीर देखिए इस समय जिला चिकित्सालय के डॉ राजपूत की एक वीडियो वायरल हो रही है जिस में भी अपने निजी क्लीनिक पर इस कोरोना काल में छोटे से कक्ष में ढेरों मरीजों को बिना सोशल डिस्टेंसिंग के बिठाए हुए हैं इनमें से कुछ मास्क में तो कुछ बिना मास्क के बैठे नजर आ रहे हैं। जबकि यह निर्विवाद सत्य है कि यदि हॉस्पिटल में इन्हीं महोदय के पास कोई जरूरतमंद मरीज निकट भी फटक जाए तो उसे लताड़ कर हिकारत के साथ 1 मिनट में बाहर का रास्ता दिखाने से यह गुरेज नहीं करते कोरोना की दुहाई दी जाती है लेकिन जब वही मरीज मोटी फीस लेकर इनके निजी क्लीनिक पर पहुंचता है तो उससे भीड़ की शक्ल में मिलने से भी इन्हें कतई कोई परहेज नहीं होता कोरोना संक्रमण की यह परिभाषा यहां गढ़ी जा रही है। प्रशासन नाम की चीज यहां नहीं है दुर्भाग्य से शिवपुरी कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह यहां कदम रखते ही पॉजिटिव हो गए अन्यथा उन्होंने कुछ व्यवस्थाओं को सुधारने का प्रयत्न किया था एडीएम बालोदिया दुर्घटना का शिकार होकर इस समय उपचार रत है। अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की स्थिति भी यही हो रही है नतीजतन स्वास्थ्य विभाग इस समय पूरी तरह अपने अंदाज में पावर प्ले की मुद्रा में है। जानलेवा लापरवाही का सिलसिला यहीं नहीं थमता बल्कि इससे भी कहीं आगे जाकर यह दुर्भाग्यपूर्ण मंजर देखा जा सकता है। जो लोग कोरोना संक्रमण के चलते मौत के मुंह में समा गए उनकी पार्थिव दे उनके परिजन ही मुक्तिधाम ले जाकर अंत्येष्टि कर रहे हैं। कोविड-19 के नाम पर अनाप-शनाप फंडिंग यहां की गई है लेकिन दुर्भाग्य जनक पहलू यह है कि पिछले समय गुना के एक व्यक्ति ने जब कोरोना के दम तोड़ दिया तो उस के परिजनों से अंत्येष्टि के लिए लकड़ी तक के पैसे वसूल कर लिए गए। संक्रमण फैलने से रोकना तो दूर बल्कि फैलाने के हर संभव जतन यहां किए जा रहे हैं संक्रमितो की लाशें परिजनों को सौपना इसी का उदाहरण है। शिवपुरी में होम क्वॉरेंटाइन जिसे हम हम आइसोलेशन कहकर परिभाषित कर सकते हैं मैं करीब 400 लोग है जो शहर के और जिले के विभिन्न इलाकों में मौजूद हैं जिनके घरों पर पृथक रहने की कोई व्यवस्था नहीं उन्हें भी होम आइसोलेट कर दिया गया है क्योंकि अस्पताल प्रबंधन या स्वास्थ्य विभाग खुद कुछ करने को तैयार नहीं। अभी ग्वालियर में ही देखा जाए तो एक भी पेशेंट यदि होम आइसोलेट है तो उसके घर के इर्द-गिर्द वेरी कटिंग कर अधिकारियों की तैनाती कर दी जाती है ताकि संबंधित परिवार एक निश्चित समय अवधि तक घर तक सीमित रहे और वह बाजार में या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर घूमकर संक्रमण का फैलाव करने से बचे लेकिन यहां वेरीकेटिंग ढूंढे नहीं मिलेगी। व्यवस्थाओं का दोहरा पन देखिए यदि कोई चिकित्सक या कोई अधिकारी पॉजिटिव पाया जाता है तो उनकी चेस्ट स्कैनिंग से लेकर उनके रिपीट टेस्ट लगवाए जाते हैं और जब तक रिपोर्ट नेगेटिव नहीं आ जाते तब तक उन्हें उपचार दिया जाता है लेकिन इसके ठीक विपरीत आम आदमी की हालत यह है कि उसे रैपिड एंटीजन टेस्ट में भी यदि पॉजिटिव करार दे दिया गया तो फिर उसकी रिपोर्ट की कन्फर्मेशन कराने की भी आवश्यकता महसूस नहीं की जाती उसे होम क्वॉरेंटाइन रहने को बोल दिया जाता है हालत बिगड़ने पर भी कोई सुनवाई नहीं और यदि वह सौभाग्य से 10 से 14 दिन जिंदा बचा तो उसे स्वस्थ बताकर बिना टेस्ट के ही घूमने फिरने की आजादी दे दी जाती है नरवर में राजस्व विभाग के निरीक्षक गणेशी लाल की मौत होम आइसोलेशन के दौरान हो गई परिजनों का कहना है कि उनकी सांस फूली डॉक्टरों को बताया लेकिन उन्होंने राजस्व निरीक्षक गणेशी लाल को हॉस्पिटलाइज करने की बजाय टाल दिया और स्थिति यह बनी कि व्यक्ति संसार से ही विदा हो गया। लोगों की जान के साथ इस तरह का घिनौना मजाक यहां खुलेआम स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जा रहा है। अस्पताल में भी इस कदर भेदभाव है कि यदि मरीज रसूखदार है तो उसे आईसीयू में स्थान मिल जाएगा अन्यथा आइसोलेशन में स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सकों के स्थान पर वहां के सफाई कर्मियों के भरोसे छोड़ दिया जाता है। राजनेताओं की हालत यह है कि उन्हें चुनाव से ज्यादा कुछ नजर नहीं आ रहा चुनाव सर्वोपरि हैं मतदान होना चाहिए भले ही मतदाताओं का प्रतिशत कितना भी कम क्यों ना हो जाए उनकी किसी को फिक्र नहीं यह स्थिति किसी एक दल की नहीं बल्कि सभी दलों की स्थिति यही है नेता आते हैं और संक्रमण की सौगात देकर चलते बनते हैं नेताओं और वीआईपी के लिए देश के बड़े-बड़े स्वास्थ्य संस्थानों के द्वार खुले हुए हैं और यहां की जनता नारकीय व्यवस्थाओं के बीच एड़ियां रगड़ रगड़ कर दम तोड़ रही है स्वास्थ्य महकमा शोषण पर आमादा है इनके पेट इतने बड़े हैं कि शासन द्वारा प्रदत्त फंड मैं तो सेंधमारी की ही जा रही है साथ ही साथ हर स्तर पर महामारी में मर रहे मरीजों की जेब कटाई की जा रही है। जो जिम्मेदार है उनके सिर पर बड़े-बड़े नेताओं के हाथ हैं ऐसे में इन पर उंगली उठाने का कोई अर्थ निकलना नहीं शिवपुरी इस महामारी के दौर में अब शिव के स्थान पर शव पुरी का रूप लेती जा रही है यहां मौतों का मंजर रोजमर्रा की बात हो गया है अभी तो यह शुरुआत है ना मालूम आगे क्या कुछ देखने और भुगतने को शेष रह गया है।
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